हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : सभी दलों को मिलकर करनी चाहिए स्वच्छ राजनीति की शुरूआत
हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव, उनमें उतारे गए उम्मीदवार व जीत के लिए विभिन्न राज्यों के सत्तापक्ष व विपक्ष की कार्यप्रणाली ने राज्यसभा के गठन के प्रारूप को झुठलाकर रख दिया है। संविधान निर्माताओं ने जिस सोच के साथ राज्यसभा का गठन किया, उस सोच के साथ किसी दल ने चुनाव नहीं लड़ा, जो लोकतंत्र प्रक्रिया में सही नहीं कहा जा सकता।
यह बात वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मेन्द्र घणघस ने राज्यसभा चुनाव में विभिन्न दलों की कार्यप्रणाली पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने कहा कि वैसे तो यह हर दल का आंतरिक मामला है कि वह किसको राज्यसभा में भेजे लेकिन इन दलों की इस स्वतंत्रता ने राज्यसभा के गठन के मकसद पर सवालिया निशान लगा दिया है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा के गठन व इसके नियम पढ़ने पर साफ पता चलता है कि विभिन्न राज्यों की विधानसभा सदस्यों की संख्या बल के आधार पर उस राज्य के राज्यसभा सांसदों की व्यवस्था की गई है और नियमों में स्पष्ट लिखा है कि राज्य से चुने गए ये सदस्य उपरी सदन में राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे। यही नहीं, राज्यसभा के लिए बुद्धिजीवी, खिलाड़ी, डाक्टर, वकील, सेना से जुड़ा व्यक्ति, सांइटिस्ट, लेखक, साहित्यकार या विशेष उपलब्घि प्राप्त व्यक्तियों के चयन को प्राथमिकता देने की बात कही गई ताकि वे अपनी बुद्धि व अनुभव के आधार पर अपने राज्य की बात रखें।
एडवोकेट धर्मेन्द्र घणघस ने कहा कि वर्तमान में विभिन्न राजनीतिक दलों ने राज्यसभा चुनाव व इसमें प्रत्याशी उतारे जाने की परिभाषा ही बदलकर रख दी है। ये दल अपनी सुविधानुसार प्रत्याशी उतारने लगे हैं जिसके चलते एक राज्य के व्यक्ति को दूसरे या तीसरे राज्य से राज्यसभा सांसद बना दिया जाता है, चाहे उसे उस राज्य की भौगोलिक जानकारी, समस्याओं, आवश्यकताओं की जानकारी भी ना हो। यही नहीं, कई बार ऐसा भी होता है कि जिस नेता को विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में जनता नकार देती है, उसे उपरी सदन यानि राज्यसभा का सदस्य बना दिया जाता है जो न केवल उपरी सदन बल्कि जनता का भी अपमान है। उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को आपस में मिलकर राज्यसभा के गठन व इसकी परिभाषा के तहत उम्मीदवार उतारकर स्वच्छ राजनीति की शुरूआत करनी चाहिए।
Posted On : 11 June, 2022