रिपोर्टर संजय पुरी दिव्य ज्योति जाग्रित संस्थान द्वारा स्थानीय पठानकोट आश्रम में करवा चौथ के पवित्र पर्व के उपलक्ष पर सतसंग का आयोजन किया गया जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विकासानंद जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में व्रत व त्योहारों को विशेष स्थान दिया गया है | परंतु हमारी संस्कृति के अंदर जितने भी पर्व हैं जितने भी त्यौहार हैं जो भी परंपराएं हैं उनके पीछे कोई ना कोई अध्यात्मिक संदेश जरूर छुपा होता है यह सभी प्रथाएं प्रतीकात्मक होती हैं और कहीं ना कहीं उनके पीछे कोई आध्यात्मिक कारण होता है| इसे शुरू करने के पीछे कोई आध्यात्मिक तथ्य जरूर होता है और समय के चलते हुए आध्यात्मिक रहस्य लुप्त होते चले जाते हैं और हमारी यह परंपराएं हमारे यह प्रथाएं और श्रद्धा मात्र अंध प्रथाएं बनकर रह जाते हैं | कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व है करवा चौथ का | भारतीय पर्व परंपरा में यह ऐसा त्योहार है जो पति पत्नी के संबंध का परिचायक है | करवा चौथ के दिन पतिव्रता स्त्रियां अपने पति के कुशलक्षेम व दीर्घ आयु के लिए व्रत रखती है | सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में सरगी खाने के पश्चात इस उपवास का प्रारंभ होता है | पर भारतीय संस्कृति के अंतर्गत मनाए जाने वाले पर्व व व्रत मात्र बाहरी परंपराओं तक सीमित नहीं होते| उनके मध्य आत्मोन्नति हेतु विराट व गूढ़ संदेश निहित होते है | यदि पर्वों में निहित उन मार्मिक संदेशों को न समझा जाए तो पर्वों की परंपराएं मात्र अंधप्रथाएं बनकर रह जाती है |करवाचौथ के व्रत पर सुनने वाली वीरावती की कथा मनुष्य की आत्मिक उन्नति के कई अनमोल रत्न अपने भीतर समेटे हुए है| वीरां प्रतीक है जीवात्मा अथवा साधक की उपवास सूचक है ईश्वर का सामिप्य प्रदान करने वाली ध्यान साधना का | इस साधना को यानी प्रयास को एक साधक को तब तक जारी रखना होता है जब तक उसका परमात्मा यानी चंद्रमा से मिलन न हो जाए| जब वीरां के भाइयों ने चंद्रमा के उदित होने का भ्रम उत्पन्न किया तो उसने भोजन ग्रहण किया और उसके पति की मृत्यु हो गई| पर जब वीरां को आभास हुआ कि उससे गलती हो गई तो उसने शिव पार्वती की आराधना कर पुनः निष्ठा से उपवास किया और उन्हें पूरे प्राणपन से निभाया तो उसका पति जीवंत हो उठा | पति पत्नी का मिलन हुआ | एक साधक भी जब संपूर्ण विश्वास से चलता हुआ पुनः प्रयास करता है तो वह भी माया के फंदों को तोड़ने में सफल हो जाता है | सदगुरु से प्राप्त ब्रह्ज्ञान की साधना करते हुए वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है | एक दिन वह जीवात्मा अपने स्रोत प्रमात्मा में विलीन हो जाती है | यही कहलाता है आत्मा परमात्मा का शाश्वत मिलन|अतः आत्मा (नारी ) को सदगुरु के सानिध्य में परमात्मा (परम पुरुष) से मिलन प्राप्त करने का संदेश देता है , करवाचौथ का पर्व, कार्यक्रम के अंत में गुरु बहन नंदनी , अपरना, निधानी ने सुमधुर भजनों का गुणगान किया विश्व शांति के मंगल कामना हेतु उपस्थित साधकों ने ध्यान साधना भी की ।