गुरु पूर्णिमा पर भक्ति और कृतज्ञता का अभ्युदय - गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

हिसार, राजेंद्र अग्रवाल  :  गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य पर गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के साथ ऑनलाइन ध्यान, संगीत और ज्ञान का कार्यक्रम आयोजित किया गया। स्टेट मीडिया कोऑर्डिनेटर नीरज गुप्ता ने बताया कि बून आश्रम से प्रात: 5 बजे लाईव वेबकास्ट के माध्यम से गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी के साथ लाईव सत्संग में जुड़कर आनंद लिया।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी ने ज्ञान चर्चा में बताया कि दिल  की भाषा सिर्फ़ महसूस की जा सकती हैं समझी नहीं जा सकती। उन्होंने कहा कि जीवन एक उत्सव हैं और हमारे जन्म का उद्देश्य भी उत्सव मनाना एवं लोगों को यही एहसास कराना हैं। जब हम उत्सव मनाते हैं तो हम पूर्णता महसूस करते हैं और अगर पूर्णता नहीं हैं तो वह उत्सव है ही नहीं। यही गुरु पूर्णिमा का संदेश हैं। उन्होंने कहा कि जब हम ज्ञान और गुरु उत्साह से लबरेज़ होते है तो हम दुनिया में केवल प्रेम और रोशनी लाते हैं। भूखे को खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना और सभी के चेहरे पर मुस्कान लाना ही हमारे आत्मा का भोजन हैं।

जैसे सड़कों के बिना नगर, कोष के बिना राजा, व्यवसाय के बिना व्यापारी अधूरा है वैसे ही गुरु के बिना जीवन को माना जाता है। प्रश्न उठता है कि गुरु का इतना महत्त्व क्यों है? आपको गुरु की आवश्यकता क्यों है?

कभी-कभी जीवन अत्यंत जटिल प्रतीत होता है; जिसमें सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उदारता-लोभ, और राग-वैराग्य साथ-साथ होते हैं। जब हमारा जीवन ऐसे विपरीत मूल्यों से भरा होता है, तो मन कभी-कभी इन जटिलताओं को संभालने में असमर्थ हो जाता है और बस टूट जाता है।

ऐसे विकट समय में ही मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु ज्ञान की आवश्यकता होती है। गुरु वही ज्ञान है। आपने देखा होगा कि जब आप किसी घटना में सम्मिलित नहीं थे तो आप श्रेष्ठ सुझाव दे पाते हैं लेकिन जब आप स्वयं किसी मुसीबत में होते हैं तो ऐसा सम्भव नहीं होता। ऐसा इसलिए है कि जब आप उलझन से बाहर होते हैं, मन में ज्ञान का उदय होता है। गुरु वह है जो सदा हर उलझन से बाहर है। वह अराजकता के बीच रहकर भी  अराजकता का साक्षी है।
गुरु एक सर्किट ब्रेकर की तरह है। जब आप जीवन को संभाल नहीं सकते, तो आपका गुरु आता है और रक्षा करता है जिससे आप विवेकपूर्ण व संतुलित बने रहें। यदि कोई तीव्र इच्छा है जो आपको परेशान करती है, तो सांत्वना देने के लिए गुरु है। आप अपनी सभी इच्छाएं और पीड़ाएं  गुरु को अर्पित कर देते हैं। गुरु होने का अर्थ है प्रतिक्षण विश्राम करने और मुस्कुराने में सक्षम होना, आत्मविश्वास के साथ चलना, निडर होना और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण  रखना; और यही ज्ञान  है।

गुरु एक तत्व है, एक सिद्धांत, एक आंतरिक गुण। यह शरीर या रूप तक सीमित नहीं है। आपके मना करने या विद्रोही होने के बावजूद गुरु आपके जीवन में आता है। जीवन में गुरु सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति  के भीतर गुरु तत्व होता है। प्रत्येक व्यक्ति को उस ज्ञान का आह्वान करना है, जागृत करना है। जब यह तत्व जाग्रत हो जाता है, तो जीवन से विषाद दूर हो जाता है। हमारी चेतना में ज्ञान तब आता है जब गुरु तत्व जीवन में आता है। जब हमारी अपनी कोई इच्छा नहीं होती, तब हमारे जीवन में गुरु तत्व का उदय होता है। जाग कर देखें कि जीवन हर पल बदल रहा है और जो कुछ भी आपको मिला है उसके लिए कृतज्ञता अनुभव करें।

गुरु पूर्णिमा अपने विकास की समीक्षा करने के लिए है। यह समीक्षा आपको प्रोत्साहन देगी। यदि आपको लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में आप आध्यात्मिक पथ पर पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए हैं, तो आपने ज्ञान का उपयोग नहीं किया है। यदि आपको लगता है कि आप कहीं अटक गए हैं, तो यह अहसास होना भी विकास है। हम गुरु पूर्णिमा इसीलिए मनाते हैं। यह वह दिन है जब भक्त पूर्ण कृतज्ञता से भरकर ऊपर उठता है और गुरु से प्राप्त महान ज्ञान के लिए आभार महसूस करता है। यह समीक्षा करने का समय है कि आपने अपने जीवन में कितना ज्ञान अर्जित किया है और आप ज्ञान में कैसे बढ़ रहे हैं। इससे सुधार की संभावना का अनुभव हो सकता है, जो बदले में आप में विनम्रता लाएगा। जिस तरह से इस ज्ञान ने आपको रूपांतरित किया है, उसके लिए आभारी रहें। जरा सोचिए कि आप इसके बिना कैसे हो सकते थे। कृतज्ञता और नम्रता मिलकर आपके भीतर एक सच्ची प्रार्थना को प्रस्फुटित करते हैं ।

गुरु पूर्णिमा पर अतीत के सभी गुरुओं को याद करें। जब आपका जीवन पूर्ण होता है, आप कृतज्ञता की भावना से भर जाते हैं तो आप गुरु से आरंभ करते हैं और जीवन में हर वस्तु के प्रति सम्मान जताने तक पहुँच जाते हैं। गुरु पूर्णिमा पर भक्त पूर्ण कृतज्ञता के साथ जागता है। भक्त अपने आप में गतिशील समुद्र के समान हो जाता है। गुरु पूर्णिमा भक्ति और कृतज्ञता में उत्सव मनाने और ऊपर उठने का समय है।


Posted On : 13 Jul, 2022