हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : विपक्ष के बड़े नेताओं के अलावा पत्रकारों व राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वर्करों को हरियाणा सरकार ने भी जमकर उन पर उत्पीड़न किया
आज से 48 वर्ष पहले 25-26 जून 1975 की अर्धरात्रि को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वः इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर विपक्ष के नेताओं व पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल भेजना शुरू कर दिया था। अखबारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। हरियाणा के भी करीब 20 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया था। लोकसभाओं व विधानसभाओं का कार्यकाल भी पांच वर्ष से बढाकर छह वर्ष कर दिया गया था। राष्ट्रीय प्रेस परिषद भंग करने सहित जनता के मौलिक अधिकारों को भी समाप्त कर दिया गया था।
आरएसएस के सुभाष मल्होत्रा ने बताया कि बाल्यकाल से देश भक्ति का पाठ संघ शाखा से लिया I रोहतक से संघ वर्ग में प्रथम वर्ष शिक्षार्थी था ।
उन्होने वरिष्ठ स्वंयसेवक रामदित्ता ने जेल में एक कविता के मुख्य अंश इस प्रकार रहा ।
"देश के अनगिनत शहीदों जरें _ जरें में खून बिखरा है
परचमें हिंद , तभी कही जाकर तेरे चेहरों का रंग निखरा है
मौत की मंडियों में जाकर बोलिया दी है
मांगा है अगर एक सर तो हमने भरकर झोलियां दी है "
आपात काल के समय सत्याग्रह करते हुए पाली से अयोध्या प्रसाद बंसल , राम दित्ता जुनेजा , हरिदेव अरोड़ा व अन्य लोगों ने तत्कालीन मुख्य मंत्री बनारसी दास गुप्ता के कार्यक्रम में काले झण्डे व काग्रेस सरकार के खिलाफ नारे लगाए गए । आन्दोलन कारियों को पुलिस ने जमकर पिटाई की ।
लाल सड़क ,हांसी पर साईकल मरम्मत करने वाले निहाल चावला ने बताया कि इस दौरान काग्रेस सरकार के इशारों पर मेरे परिजनों को उत्पीड़न जमकर किया । पहले मेरे छोटे भाई को गिरफतार किया और मेरी पत्नी व दो छोटे बच्चों को पुलिस थाना में सुबह बुलाती और शाम को छोड़ती थी । गुरु दक्षिणा कार्यक्रम की सूचना स्वंयसेवकों को देने का कार्य संगठन ने दिया । मेरे पीछे पुलिस कर्मी लगे हुए थें । उन्होने बताया कि हिसार जेल में पूर्व विधायक स्वः कामरेड़ अमीर चन्द मक्कड़ भी साथ में थें ।
हरियाणा प्रेस क्लब के प्रधान , लोकतंत्र सेनानी व राजनीति सम्पादक कामरेड़ मान सिंह वर्मा ने बताया कि काग्रेस सरकार ने विपक्षी नेताओं पर जमकर अत्याचार किया है । आपात काल , पत्रकार , विपक्षी नेता व समाज के गणमान्य लोगों को जेलों में डाल दिया । उन्होने बताया आपात काल लगने सवा महीनें तक दर्पण समाचार पत्र को हिसार में घरों व बाजारों में वितरित किया । इसी दौरान उन्हे पुलिस ने उन्हें गिरफतार कर लिया ।
वर्मा ने बताया कि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया गया I इसी दिन सभी लोगों ने भूख ह्ड़तात आपात काल खिलाफ किया और केन्द्रीय जेल में हंगामा भी हुआ ।
सायरस बजने से जेल बन गई पुलिस छावनी ।
बिहार में आई बाढ़ के लिए जेल के कैदियों ने सुखा राशन आटा , दाल व चावल आदि कार्य में बड़चढ़ भाग लिया ।
हिसार जेल मे फतेहबाद ,सिरसा ,जीन्द व भिवानी के विपक्षी दलों के नेता व राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े लोगों को रखा गया ।
हिसार जेल में देश के जाने-माने समाजवादी नेता राज नारायण , जॉर्ज फर्नांडीज व ज्योति बसु मीसा के तहत बन्द रहे ।
चौधरी देवी लाल , कामरेड़ शंकर लाल , बिशन स्वरूप दालवाला , प्रो० गणेशी लाल , पीरचन्द्र , मनीराम बागड़ी , बलवन्त तायल व बलदेव तायल प्रमुख नेताओं को हिसार जेल में रखा गया ।
हिसार जेल में पत्रकार देवकुमार जैन , डाक्टर नन्द किशोर सोनी , बिशन स्वरूप दाल वाला व मानसिंह वर्मा को आपात काल में उन्हे गिरफतार किया था ।
जब 19 महीने आपात काल समाप्त होने पर हरियाणा में जनता पार्टी सरकार चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में बनी व मुख्यमंत्री बने तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण को मुख्य अतिथि आए थें । उन्होने आपात काल में जेल में बन्द कोठरी राज नारायण ने वहां पर जाकर धूप अगरबत्ती की I उस वक्त हरियाणा जेल मंत्री सुषमा स्वराज थी ।
केन्द्रीय मंत्री राजनारायण ने जेल में बन्द केदियों की सजा माफ कर दी I उन्होने जेल को सुधार की बात कही और हिसार केन्द्रीय सुधार गृह का नाम दिया ।
लोकतन्त्र सेनानी हरियाणा सचिव रामसरुप पोपली ने कहा कि उस समय पुलिस ने मुझे पर जमकर ज्यादती की बात आज भी याद है । जब पुलिस ने मुझे हांसी हवालात में बन्द किया तो एक घड़े में पड़े मुत्र को पानी पीने की जगहें दिया गया । उन्होने उस समय के थाना प्रभारी का नाम लेते हुए कहा कि आपात काल के दौरान जमकर विपक्षी को उत्पीड़न किया ।
संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक हरिश मनोचा में कहा कि जेल में भी संघ परिवार के सदस्य अपनी दिनचर्या हमेशा की तरहे सुबह शारवा ,खेलना ,एक दूसरें को मालिस करना के अलावा कीर्तन ,भजन व गीत सुनाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आए जेल में परिजनों व दोस्त लाते थें उनको सब मिलजुल बाटते थें ।
25 जून 1975 की मध्य रात्रि से लेकर 21 मार्च 1977 तक का काल खंड देश में आपातकाल के नाम से जाना जाता है। यह वह समय था जब पूरे देश में ख़ौफ़ एवं अनिश्चितता का माहौल था। समाचार पत्रों पर पूर्ण सेंसरशिप थी देश की पूरी व्यवस्था आपातकाल की भेंट चढ़ चुकी थी। जो भी व्यक्ति अथवा संस्था इसके खिलाफ आवाज उठाती थी उसका दमन सुनिश्चित था।स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद एवं अलोकतांत्रिक कालखंड था।आपातकाल की इस त्रासदी के दौर में इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले वह जेल की पीड़ा सहन करने वाले लोकतंत्र सेनानी संगठन के प्रदेश महासचिव महावीर भारद्वाज से बातचीत की।
प्रस्तुत है प्रमुख अंश:
प्रश्न :1975 में देश पर थोपे गए आपातकाल के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर :वर्ष 1975 में लगे आपातकाल के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का मकसद अपनी सत्ता को बचाना था। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी थी। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। पराजय के पश्चात उन्होंने कोर्ट में इंदिरा गांधी पर सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। जिसके आधार पर हाई कोर्ट के माननीय जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया था। दूसरी तरफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने समग्र क्रांति का नारा देश में दिया था। उन्होंने सिंहासन खाली करो कि जनता आती है के नारे के साथ देश के युवाओं को जोड़ दिया था। पहले गुजरात तथा बिहार के युवकों ने अपने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भाग लिया था। 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक अभूतपूर्व रैली हुई, जिसमें देश के सभी विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। कहा जाता है वैसे रैली पहले कभी नहीं हुई थी। रैली में आई जनता की संख्या को देखकर श्रीमती इंदिरा गांधी घबरा गई। इस रैली ने सत्ता की चूलें हिला दी थी। 25 जून की आधी रात को आनन-फानन में अपनी गद्दी बचाने के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल का काला कानून ठोक दिया।
प्रश्न:भारद्वाज जी आपातकाल घोषित होने के बाद देश में कैसा माहौल था?
उत्तर:आपातकाल की घोषणा संवैधानिक रूप से गलत थी। राष्ट्रपति से भी आपातकाल की घोषणा करने के बाद हस्ताक्षर करवाए गए थे। 25 जून की देर रात को ही जेपी आंदोलन के मुखिया लोकनायक जयप्रकाश नारायण समेत देश के सभी विपक्षी नेताओं को और कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया था।
प्रश्न:आपातकाल की घोषणा का देश पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ा?
उत्तर:आपातकाल की घोषणा के बाद देश और देश वासियों ने किस प्रकार की त्रासदी को झेला उसका वर्णन करना शब्दों में बहुत मुश्किल है। समूचा देश एक बड़ी जेल में तब्दील हो गया था। जनता के मौलिक अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गए थे। दमन शुरू हो गया था। मीडिया की आजादी को पूरी तरह से कुचल दिया गया था। बहादुर शाह जफर मार्ग पर अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई थी। कोई भी अखबार 26 तारीख को नहीं छपा। बाद में सभी अखबारों पर सेंसरशिप लागू हो गई। अविवाहित युवाओं तक की नसबंदी की जा रही थी। डर के मारे लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे। आपातकाल के दौरान किसी तरह की अपील अथवा दलील काम नहीं कर रही थी। अदालतों ने अपनी जिम्मेवारी छोड़ दी थी या यह कहना चाहिए उन पर अंकुश लगा दिया गया था।
प्रश्न:आप इस आंदोलन से कैसे जुड़े?
उत्तर: पूरे देश में युवा शक्ति लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आवाहन पर एकजुट हो गई थी। मैं महेंद्रगढ़ कॉलेज के छात्र संघ का अध्यक्ष था तभी से जेपी आंदोलन के साथ जुड़ गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभक्त संगठनों के साथ मिलकर आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। मैं 1970 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक स्वयंसेवक था। संगठन के आदेश पर हमने रेवाड़ी में सत्याग्रह किया।
प्रश्न:उस समय आपकी आयु क्या थी और पारिवारिक परिस्थिति कैसी थी?
उत्तर:नवंबर 1975 में जब हमने सत्याग्रह किया उस वक्त में 20 वर्ष का था मेरा विवाह हो चुका था तथा 2 साल की एक बेटी भी थी। जब मैंने गांव जाकर अपनी पत्नी को यह बताया कि हम सत्याग्रह करके आपातकाल के विरोध में जेल जाने वाले हैं तो उन्होंने मेरा साहस बढ़ाते हुए कहा कि आप देश के लिए जो चाहे वह करो हमारी चिंता मत करो।उन्होंने जब मेरे से यह पूछा जेल से वापस कब आओगे तो इसका जवाब मेरे पास नहीं था जिस प्रकार के हालात उस समय देश के थे उस समय यह कहना मुश्किल था के जेल जाने के बाद हम वापस भी आएंगे या नहीं। मैंने अपनी पत्नी सुशीला से कहा अपनी मानसिकता को इस तरह से तैयार करो हम वापस आ भी सकते हैं और नहीं भी लेकिन इतना कहने के बाद भी मेरी पत्नी एवं मेरा परिवार मेरे इस निर्णय में बाधक नहीं बना।
प्रश्न:कांग्रेस सरकार ने यह कदम क्यों उठाया?
उत्तर:इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए लाखों बलिदानों के पश्चात स्थापित लोकतंत्र की हत्या कर डाली। 1975 से 1977 तक देश में लोगों पर भयंकर अत्याचार किए। सत्याग्रह करने वालों की बेरहमी से पिटाई की गई उन्हें उल्टा लटकाया गया कपड़ों में चूहे छोड़े गए तथा बर्फ पर नंगा लिटाया गया। आपातकाल के जुल्म के सामने अंग्रेजों के अत्याचार भी फीके पड़ गए सारी मर्यादा को ताक पर रख दिया गया। वर्तमान में देश के अनेक राज्यों ने आपातकाल में जेल की यात्रा सहने वाले देशभक्तों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया है। हरियाणा सरकार ने भी ऐसे सभी लोगों को लोकतंत्र सेनानी मानते हुए उन्हें 10000 प्रतिमाह सम्मान राशि भी दी है। इसके साथ अनेक सुविधाएं भी सरकारों ने लोकतंत्र सेनानियों को प्रदान की है। हम चाहते हैं कि आपातकाल का इतिहास भावी पीढ़ी को पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाए 45 वर्ष तक कांग्रेस ने इस सच्चाई को छुपाए रखा। देश में एक ऐसा कालकांड भी आया था जब पूरी तरह से तानाशाही इस देश में व्याप्त हो गई थी। यह युवा पीढ़ी को जानकारी देना चाहिए आपातकाल की लड़ाई दूसरी आजादी की लड़ाई थी जिसमें लाखों लोगों ने अपना योगदान दिया।
Posted On : 27 June, 2022