कृषि अवशेष ऊर्जा आपूर्ति का बेहतर विकल्प हो सकते हैं साबित: कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज

हिसार, राजेंद्र अग्रवाल  :   चौ.च.सिं.हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में वेबिनार में देश-विदेश से 150 वैज्ञानिक हुए शामिल
      कृषि अवशेष देश की ऊर्जा मांग की आपूर्ति का एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं। इनके उचित प्रबंधन से हरित ऊर्जा प्राप्त होने के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में भी कमी आएगी। यह विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे विश्वविद्यालय के अक्षय और जैव-ऊर्जा अभियान्त्रिकी विभाग और ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, कनाडा के सयुंक्त तत्वावधान में सतत फसल अवशेष प्रबंधन में जैव-रूपांतरण प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति श्रंृखला की भूमिका विषय पर आयोजित वेबिनार में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस वेबिनार का आयोजन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित फसल अवशेष प्रबंधन के लिए तकनीकी-आर्थिक रूप से व्यवहार्य बायोमास रूपांतरण प्रौद्योगिकियों की पहचान नामक स्पार्क परियोजना के तहत किया गया था।
कुलपति ने कहा कि बायोमास वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा स्त्रोत के रूप में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में कृषि अवशेष के रूप में प्रचुर मात्रा में बायोमास उपलब्ध है लेकिन इसका सही ढंग से निस्तारण नहीं हो रहा है। उदहारण के लिए धान की पराली को ज्यादातर जलाया जा रहा है जबकि इसके सही प्रबंधन से हरित ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा आज पराली या अन्य कृषि अवशेषों के प्रबंधन के लिए मशीनों के रूप में विकल्प उपलब्ध हैं। उपयुक्त आपूर्ति श्रंृखला की सहायता से इनका सही ढंग से प्रबंधन हो सकता है।  उन्होंने कहा वास्तव में इस प्रकार के ऊर्जा संसाधन के उपयोग को व्यवहार्य बनाने के लिए इसकी आपूर्ति श्रृंखला, संग्रह और परिवहन से लेकर भंडारण और वितरण तक को अच्छी तरह से संरचित और अनुकूलित करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस वेबिनार के विषय को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे इस क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों को अधिक जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, कनाडा के एजंगक्ट प्रोफेसर डॉ शाहाबादीन सोखानसंज ने मुख्य संभाषण देते हुए जैव-रूपांतरण प्रौद्योगिकियों और उनके लाभ, वाणिज्यिक जैव-रूपांतरण प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों के सुचारू कामकाज में आपूर्ति श्रृंखला की भूमिका तथा आपूर्ति श्रृंखला कैसे कच्चे माल को सरलतापूर्वक, कम खर्च से अच्छे प्रबंधित तरीके से उपलब्ध कराने में मदद करेगी, के बारे में बताया। डॉ. सोखानसंज जोकि उपरोक्त परियोजना के विदेशी सह-मुख्य अन्वेषक भी हैं, ने खेतों में पराली जलाने से रोकने और इसे किसानों की आय का लाभदायक स्रोत बनाने के बारे में भी प्रकाश डाला। स्पार्क परियोजना के भारतीय मुख्य अन्वेषक एवं हकृवि के अक्षय और जैव-ऊर्जा अभियान्त्रिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र कुमार यादव ने जैव रूपांतरण प्रौद्योगिकियों के महत्व और लाभ तथा इन प्रौद्योगिकियों की सफलता में आपूर्ति श्रृंखला की भूमिका और क्षेत्र में अवशिष्ट कचरे के प्रबंधन के बारे में चर्चा की।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने स्वागत भाषण देते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्पार्क परियोजना के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। वेबिनार को ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं स्पार्क परियोजना के विदेशी मुख्य अन्वेषक डॉ. एंथनी लाऊ और कृषि अभियान्त्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. बलदेव डोगरा ने भी संबोधित किया। वेबिनार की संयोजक सचिव डॉ. यादविका ने बताया कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के पूर्व कुलपति पदमश्री से अलंकृत डॉ. बी.एस. ढिल्लों सहित 150 वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों ने इस वेबिनार में भाग लिया।


Posted On : 22 June, 2022