हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : ग्वार फसल का उखेड़ा (जडग़्लन) रोग अभी भी ग्वार की एक प्रमुख समस्या बना हुआ हैं। इसका मुख्य कारण है किसानों में जानकारी का अभाव हैं। इस रोग की फंगस जमीन में रहती है। जैसे ही फसल बोई जाती है, यह फंगस पौधों की जड़ों पर आक्रमण करती है। इसके प्रभाव से जड़े गलकर काली पड़ जाती है तथा पौधों की खुराक व पानी बाधित होने से पौधें पीले पडक़र सूख जाते हैं। अधिकत्तर किसान आज भी इसे लाईलाज बीमारी समझकर हानि उठा रहे हैं। परन्तु मात्र 15 रूपये की दवा (बाविस्टिन 50 प्रतिशत) से बीच उपचार कर के इस रोग से सफलतापूर्वक ग्वार की फसल को बचा सकते हैं। यह बात एचएयू हिसार से सेवानिवृत्त कीट विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरके सैनी ने व्यक्त किए। वे खंड सिवानी के गांव बिधवान में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा हिंदुस्तान गम एंड कैमिकल्स भिवानी द्वारा आयोजित ग्वार उत्पादन जागरूकता शिविर में किसानों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे बीज को बाविस्टिन 50 प्रतिशत (कार्बन्डाजिम) से तीन ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बोए। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग से पधारे कृषि विकास अधिकारी डॉ. रविंद्र जाखड़ ने किसानों का आह्वान किया कि वे मिट्टी व पानी की जांच अवश्य करवाएं, ताकि रासायनिक खादों का तर्कसंगत प्रयोग हो। उन्होंने विभिन्न कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक मदद के बारे में भी अवगत करवाया। शिविर में बीज उपचार की दवा के सैंपल भी फ्री बांटे गए तथा किसानों द्वारा नरमा कपास व अन्य फसलों से संबंधित प्रश्रों के उत्तर भी दिए गए। इस अवसर पर अशोक कुमार, राजेश कुमार, विक्रम, राहुल, संदीप, कृष्ण, बलवान, सुरेश, मनीष, नरेश, यश्पाल, दलबीर सहित लगभग 100 किसान मौजूद रहे।
Posted On : 23 May, 2022