हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : राज्य सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों को ग्रांट की बजाय लोन देने की योजना अव्यवहारिक है और इससे वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। यह पहली बार देखा जा रहा है कि सरकार अपने ही संस्थान को ग्रांट उपलब्ध करवाने की बजाय लोन देने का पत्र जारी कर रही है।
यह बात वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मेन्द्र घणघस ने सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों को लोन देने की योजना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने कि एक जिम्मेवार नागरिक के नाते हर किसी का दायित्व बनता है कि वह सरकार व उसके नुमाइंदों से इस विषय पर बात करे और उन्हें इस फैसले के दुष्परिणाम बताएं। उन्होंने कहा कि अब विश्वविद्यालयों को ग्रांट मिलने से वहां प्रबंधन सही ढंग से चल रहा था लेकिन अब ग्रांट रोककर लोन देने से हालत ये हो जाएगी कि विश्वविद्यालय उस लोन को चुकाने के लिए विद्यार्थियों पर फीस बढ़ोतरी का बोझ डालेंगे। बहुत से ऐसे परिवार या विद्यार्थी होंगे, जो यह बढ़ौतरी सहन नहीं कर पाएंगे और उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को बाध्य होना पड़ेगा। हो सकता है कि सरकार अपने फैसले के तहत आम गरीब बच्चों की प्रतिभा को दरकिनार करके उन्हें शिक्षा से वंचित रखना चाहती हो, यदि ऐसी मंशा है तो यह अवश्य फलीभूत होगी।
एडवोकेट धर्मेन्द्र घणघस ने कहा कि शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है लेकिन इस फैसले के तहत बच्चों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। यदि सरकार के पास बजट की कमी है या आर्थिक संकट है तो इसे दूूर करने के दूसरे उपाय खोजने चाहिए लेकिन ग्रांट की जगह लोन देना समस्या का समाधान नजर नहीं आ रहा। उन्होंने आशंका जताई कि ऐसा करके सरकार विश्वविद्यालयों को निजी हाथों में सौंपने की रणनीति बना रही है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर चुनावों के समय जनता से बड़े—बड़े वादे करने व मुफ्तखोरी की आदत को बढ़ावा देने वाले वादे करने की बजाय यदि सरकार शिक्षा व चिकित्सा जैसी मूलभूत जरूरतें मुफ्त कर दें तो सबसे अच्छा रहेगा लेकिन कोई भी सरकार ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही क्योंकि यदि शिक्षा मुफ्त कर दी तो देश का हर नागरिक जागरूक हो जाएगा और जागरूक नागरिक अपने अधिकार मांगेगा। ऐसे में सरकार हर बच्चे को शिक्षित करने की बजाय अपनी नीतियों से उन्हें शिक्षा से वंचित रखने की योजना बना रही है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह अपने फैसले पर फिर से विचार करें और विश्वविद्यालयों को ग्रांट देने की पुरानी योजना को ही चालू रखें ताकि वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर लोन चुकाने का बोझ न पड़े।
Posted On : 10 May, 2022