हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक रॉव बहादुर डॉ. रामधन सिंह द्वारा देश के खाद्यान उत्पादन में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए उन्हें आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। हरियाणा और पंजाब राज्यों में हरित क्रांति अवधि के दौरान अनाज के उत्पादन और उत्पादकता में जो उपलब्धियां प्राप्त की गई वे उनके द्वारा स्थापित फसल सुधार कार्यक्रमों की मजबूत नींव के कारण ही संभव हो सका है। ऐसे महान वैज्ञानिकों और उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे विश्वविद्यालय में स्वर्गीय रॉव बहादुर डॉ. रामधन सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि इस महान वैज्ञानिक ने विभिन्न फसलों की नई किस्में इजाद कर भारत ही नही अपितु दुनिया में अलग पहचान बनाई। उनके द्वारा तैयार की गई बासमती चावल की 370 किस्म की बदौलत आज भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। उन्होंने कहा डॉ. रामधन सिंह ने अपने जीवन में गेहंू, चावल, जौ तथा दलहनों की 25 उन्नत किस्मों को विकसित किया जिनके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप में खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
वैज्ञानिक करें कृषि की ज्वलंत समस्याओं पर अनुसंधान
प्रो. काम्बोज ने डॉ. रामधन सिंह को श्रद्धांजलि दी तथा कहा कि वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और कड़ी मेहनत व लगन के साथ कृषि की ज्वलंत समस्याओं को लेकर अनुसंधान कार्य करते हुए देश को खाद्यान्न तथा पोषण सुरक्षा प्रदान करने में योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा मौसम में निरंतर हो रहा बदलाव कृषि पैदावार के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर रहा है। गत मार्च माह में तापमान में वृद्वि होने के कारण गेंहू की हुई कम पैदावार इसका साक्ष्य है। उन्होंने कहा मौसम की हर परिस्थिति व अन्य जैविक और अजैविक दबावों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों के स्तर पर फसलों की उपयुक्त किस्मों के साथ-साथ आकसमिक कार्ययोजना तैयार करने की बहुत जरूरत है। इस मौके पर कुलपति ने कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित किए गए दो मैन्युअल का विमोचन किया।
इस अवसर पर गोविंद बल्भ पंत कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर के प्रोफैसर डॉ. जे.पी. जयसवाल ने बदलती मौसमी परिस्थिति के अंतर्गत गेहूं फसल सुधार रणनीति विषय पर मुख्य संभाषण दिया और देश की गेहूं की मांग की अपूर्ति के लिए तापमान, रोग व कीट प्रकोप जैसे विभिन्न जैविक व अजैविक दबावों के बावजूद अधिक पैदावार देने वाली किस्में विकसित किए जाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा विश्व के मुकाबले भारत के पास केवल 2 प्रतिशत भूमि है जबकि जनसंख्या का हिस्सा 17.6 प्रतिशत है। ऐसे में जैविक व अजैविक दबावों के चलते इतनी अधिक जनसंख्या को खाद्यान्न सुरक्षा देना बहुत बड़ी चुनौती है।
इससे पूर्व कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. एस.के. पाहुजा ने डॉ. रामधन सिंह द्वारा कृषि क्षेत्र में दिए गए अभूतपूर्व योगदान की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि देशी गेहूं की किस्म सी-306 जिसे खाने में सबसे स्वादिष्ट माना जाता है, के जनक भी डॉ. रामधन सिंह ही थे। उन्होंने कहा उनकी याद और युवा वैज्ञानिकों के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में मार्गदर्शन के लिए विश्वविद्यालय में उनके नाम से रामधन सिंह बीज फार्म की स्थापना भी की गई है। अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष सहित विद्यार्थी मौजूद रहे।
Posted On : 10 May, 2022