प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक: प्रो. बी.आर. काम्बोज

हिसार,  राजेंद्र अग्रवाल: फसल उत्पादन बढ़ाने के चलते प्राकृतिक संसाधन दिन प्रतिदिन नष्ट हो रहे हैं। कृषि के लिए जल के अंधाधुंध दोहन से जहां भृ-जल स्तर निंरतर घट रहा है वहां भूमि की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो रही है। इसलिए किसानों को ऐसी कृषि प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ किसानों को अधिक आर्थिक लाभ हो सके।
उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे विश्वविद्यालय में आयोजित कृषि अधिकारियों की दो दिवसीय कार्यशाला (खरीफ) को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा देश में हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन में आशतीत वृद्वि हुई है। खाद्यान्न उत्पादन जो 1966-67 में मात्र 2.59 मिट्रिक टन था वह बढक़र 36.77 मिट्रिक टन का आंकड़ा छू चुका है। परन्तु सघन  खेती से भूमि की उत्पादन शक्ति नष्ट होने के कारण ज्यादातर फसलों की पैदावार में या तो स्थिरता आ चुकी है या गिरावट होने लगी है जो निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा प्रादन करने के लिए चुनौती पैदा कर रहीे है। उन्होंने कहा यह उपयुक्त समय है जब किसानों को  उपरोक्त स्थिति के लिए जिम्मेवार धान-गेंहू फसल चक्र बारे पुन: विचार करने की जरूरत है। फसल विविधिकरण, समन्वित खेती, अनुबंध खेती, प्राकृतिक खेती या जैविक खेती ऐसे विकल्प है जो किसानों की आमदनी दोगुणा करने के लिए उपयोगी साबित हो सकते है।
कुलपति ने वर्तमान समय में बदलते मौसम पर भी चिंता व्यक्त की और कहा इससे कृषि उत्पादन बहुत प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से विशेष रणनीति तैयार करने का आहवान किया। उन्होंने फसलों की समय पर बीजाई करने के साथ फसलों में मिट्टी जांच के आधार पर जैविक खादों के साथ उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करने और उचित फसल अवशेष प्रबंधन करने पर बल दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कृषि विशेषज्ञों से किसानों से अधिक पैदावार देने वाली फसल किस्मों, लेजर लैंड लेवलर, जीरो टिल, मल्टी क्रॉप प्लांटर, फसल अवशेष प्रबंधन प्रणाली, समन्वित खरपतवार व कीट प्रबंधन तकनीकें प्रयोग करने हेतु प्रेरित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कृषि वैज्ञानिकों का प्रत्येक प्रयास किसानों को अधिक लाभ दिलाने के साथ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर केन्द्रित होना चाहिए।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के अतिरिक्त कृषि निदेशक डॉ. रोहताश सिंह ने कृषि विभाग की ओर से खरीफ फसलों के लिए तैयार की गई विस्तृत रणनीति की जानकारी दी। उन्होंने गत वर्ष विभिन्न खरीफ फसलों की पैदावार के साथ-साथ विभाग की विशिष्ट उपलब्धियों और नई पहल बारे विस्तारपूर्वक ब्यौरा दिया और कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रदेश में फसल विविधिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी प्रकार धान की पराली को जलाने की बजाए इसका प्रबंधन करने वाले किसानों को एक हजार रूपए प्रति एकड़ सहायता राशि के रूप में प्रदान किए जा रहे है। उन्होंने कहा इस वर्ष प्रदेश में प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से 2500 एकड़ भूमि में प्रदर्शन लगाए जाएंगे।
नई सिफारिशों के लिए हुआ मंथन : विस्तार शिक्षा निदेशक
विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला की विस्तृत जानकारी देते हुए निदेशालय द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न विस्तार गतिविधियों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न फसलों के लिए की गई सिफारिशों पर मंथन करते हुए कुछ नई सिफारिशों को लागू करवाने को लेकर किया गया है। अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई विभिन्न फसलों की नई किस्मों की जानकारी देते हुए मौजूदा समय में चल रहे अनुसंधान कार्यों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। इस कार्यशाला के दौरान प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभी जिलों के कृषि उपनिदेशक, कृषि विज्ञान केंद्रों के समन्वयक व विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों के अधिष्ठाता, निदेशक एवं विभागाध्यक्षों ने खरीफ फसलों की समग्र सिफारिशों के लिए अपने विचार रखे।


Posted On : 27 April, 2022