हिसार, राजेंद्र अग्रवाल: ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते निरंतर बढ़ रही जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण प्रदान करना एक गंभीर चुनौती है जिससे निपटने के लिए ठोस प्रयास करने की जरूरत है। यह बात चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने आज विश्वविद्यालय में मक्का पर 65वीं कार्यशाला को बतौर मुख्यातिथि संबोधित करते हुए कही। इस तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना और चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है।
प्रो. काम्बोज ने कहा कि वर्तमान समय में देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मुख्यरूप से गेंहू और चावल पर निर्भर है जबकि इस चुनौती से निपटने में मक्का बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। विश्व स्तर पर भी मक्का, गेंहू और चावल के बाद तीसरी महत्वपूर्ण अनाज की फसल है लेकिन उत्पादन और क्षेत्रफल में भारत का क्रमश: चौथा और छठा स्थान है। उन्होंने कहा कि यह बहुत संतोष का विषय है कि हाल के वर्षों में भारत की फसल प्रणालियों में मक्का को भी स्थान दिया जाने लगा है। कई राज्यों ने इसके उत्पादन और उत्पादकता में प्रभावशाली वृद्धि दिखाई है जबकि फसल सुधार, प्रबंधन और विविधिकरण में नवाचारों के साथ इसके अंतर्गत क्षेत्र, उत्पादन और उत्पादकता में और वृद्धि की व्यापक गुंजाइश है। उन्होंने कहा हलांकि भारत में मक्का की 2.9 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता वैश्विक औसत 5.6 टन प्रति हेक्टेयर से काफी कम है लेकिन फसल प्रणालियों में मक्का को शामिल करने और उन्नत प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से इसमें सुधार संभव है।
प्रो. काम्बोज ने हरियाणा के संदर्भ में कहा कि यहां वर्तमान में कृषि में धान आधारित फसल प्रणाली प्रमुख है जिसने भूजल स्तर को लगभग 70 से 120 से.मी. प्रति वर्ष की दर से कम करके बड़ा कृषि संकट पैदा कर दिया है। मक्का की खेती करने से इसमें काफी राहत मिलेगी। धान की जगह मक्के की खेती करने वाले किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ देना राज्य सरकार की महत्वपूर्ण पहल है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान)डॉ. टी.आर. शर्मा ने वैज्ञानिकों से देश में मक्का का उत्पादन बढ़ाने का आहवान किया। उन्होंने कहा कि मक्का दाने व चारे की मुख्य फसल है। उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए बेबीकार्न, स्वीटकार्न, पॉपकार्न व उच्च प्रोटीन के लिए उपयुक्त मक्का की किस्में विकसित करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डी.के. यादव ने मुख्य संभाषण देते हुए वैज्ञानिकों से मक्का की उन्नतशील किस्मों का अधिकाधिक मात्रा में गुणवत्ताशील बीज तैयार करने का आहवान किया। इससे पूर्व भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. सुजय रक्षित ने मक्का अनुसंधान पर वार्षिक रिर्पोट प्रस्तुत की
एचएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए किए गए अनुसंधानों पर प्रकाश डाला और कहा कि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र करनाल द्वारा मक्का के 15 सिंगल क्रॉस हाइब्रिड विकसित किए गए है जिनमें से नौं हाइब्रिड का राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए अनुमोदन हुआ है। इसी प्रकार देश के जोन-1 के लिए पहला स्वीटकॉर्न हाइब्रिड एचएससी 1 और जोन-3 के लिए सफेद मक्का हाइब्रिड एचएम-4 देशभर में सर्वश्रेष्ठ हाइब्रिड है। सिंगल क्रॉस हाइब्रिड का बीज उत्पादन के साथ विभिन्न मौसमों में मक्का की खेती के लिए पूरी तकनीक विकसित की गई है। प्रधान वैज्ञानिक व कार्यशाला के नोडल आफिसर डॉ रमेश कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया व डॉ. अंजु सहरावत ने मंच का संचालन किया। इस अवसर पर डॉ. ओ.पी. चौधरी, डॉ. मेहर चंद कम्बोज, डॉ. नरेन्द्र सिंह, विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, अधिकारी, शिक्षक, गैरशिक्षक कर्मचारी, छात्र व किसान उपस्थित थे।
उत्कृष्ट कार्य के लिए वैज्ञानिक व किसानों को सम्मानित किया
इस मौके पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (मक्का) की वार्षिक रिर्पोट विमोचित की गई जबकि मक्का अनुसंधान में जीवनप्रयंत उपलब्धियों के लिए डॉ. साई दास को लाइफ टाइम एचीमेंट अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त मक्का पर श्रेष्ठ कार्य करने के लिए डॉ. जी.सी. महला, डॉ. ऋषि पाल, डॉ. धर्मपाल और डॉ. महेन्द्र सिंह को भी सम्मानित किया गया। इनके अतिरिक्त बेबी कॉर्न की खेती, विविधिकरण, मक्का में मशीनीकरण और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए प्रगतिशील किसानों पदमश्री से कंवल सिंह चौहान, धर्मवीर कंबोज, आदित्य कुमार, मनोज कुमार, गुरमेल सिंह, हरविंदर सिंह और पवन कुमार को पुरस्कृत किया गया।
Posted On : 19 April, 2022