हिसार, राजेंद्र अग्रवाल: इस वर्ष 2 अप्रैल से हिंदू नववर्ष शुरू हो रहा है। अपने देश में सरकारी स्तर पर भी और व्यापारिक क्षेत्र में भी नया वित्त वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ किए जाने की ही परंपरा रही है। परंतु ब्रिटिश काल में सुविधा के नाम पर एक अप्रैल से शुरू कर दिया गया। इसका विशेष कारण यह था कि यह मार्च के अंतिम सप्ताह में या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ही आता है। पुरातन ग्रंथो के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना की गई थी।
विक्रमी संवत नव वर्ष पूरे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न नामों से मनाया जाता है। हजारो वर्षो से भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, पूरे देश मे मनाए जाने वाले उत्सव इसका मूल आधार है। विभिन्नता में एकता के दर्शन केवल पूरे विश्व में भारत में ही मिलते है। नए वर्ष से नवरात्रों का प्रारम्भ होता है, जिसमे घर-घर में 9 दिन तक दुर्गा पूजा की जाती है। इन्ही दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। महिला, पुरुष व बच्चे व्रत रखते हैं। घरों में शुद्धता व सात्विकता का पूरा ध्यान रखा जाता है। चैत्र शुक्ल नौवीं को ही रामनवमी का उत्सव भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, विभिन्न स्थानों पर रामकथाओं का आयोजन किया जाता है। चैत्र पूर्णिमा को ही राम भक्त श्री हनुमान जयंती मनाई जाती है। इसी दिन शोभा यात्राओं का आयोजन किया जाता है। देखा जाए तो चैत्र माह का पूरा शुक्ल पक्ष ही उत्सवों से भरा रहता है।
वर्ष प्रतिपदा के दिन ही भगवान झूलेलाल का जन्म दिवस मनाया जाता है। सिंधी बंधु इस उत्सव को महोत्सव के रूप में मनाते हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में आस्था का एक विशेष उत्सव होता है। व्यापारी वर्ग अपने नए प्रतिष्ठानों का शुभारंभ व गृह प्रवेश अधिकतर इसी दिन करते हैं। इस उत्सव पर एक मिट्टी के बर्तन में नीम के फूल, नारियल, गुड़, आम और इमली को मिला कर प्रसाद तैयार किया जाता है व इसका वितरण किया जाता है।
महाराष्ट्र में वर्ष प्रतिपदा के ही दिन गुड़ी पड़वा के नाम से महापर्व के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। हिन्दू लोग इस दिन नए वस्त्र धारण करते है। घरों में विभिन्न व्यंजन व पकवान बनाये जाते है। व्यापारी इस दिन अपने बही-बसनो की विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने वानर राज बाली का वध करके वहां की प्रजा को अन्याय से मुक्ति दिलाई थी। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी। चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि पर ही गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, माह और वर्ष की गणना करते हुए हिन्दू पहचान की रचना की थी, इसी दिन से ही पंचांग प्रारम्भ होते है और वर्ष भर के पर्व उत्सव और अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते है।