वैज्ञानिक कम जोत वाले किसानों पर केंद्रित कर करें अनुसंधान : कुलपति प्रोफैसर बी.आर.काम्बोज

 हिसार, राजेंद्र अग्रवाल : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आज इंडियन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (नार्थजोन) की जैव तर्कसंगत दृष्टिकोण के माध्यम से फसल सरंक्षण विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आरंभ हुई। विश्वविद्यालय के पौध रोग विज्ञान विभाग के सहयोग से आयोजित की गई इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने उद्घाटन किया। कार्यक्रम में देशभर से 200 से अधिक कृषि वैज्ञानिक और गैर सरकारी उद्योगों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।
कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए फसल संरक्षण वैज्ञानिकों से फसलों में लगने वाले रोग, कीट एवं सूत्रकृमी के प्रबंधन के लिए उपयुक्त फसल संरक्षण उपायों पर अधिकाधिक शोध कार्य करने का आह्वान किया। उन्होनें कहा कि फसलों पर विभिन्न प्रकार की बीमारियां एवं कीट न केवल फसल की गुणवत्ता अपितु इनकी पैदावार भी प्रभावित करते हैं। इसके साथ-साथ इनका उपज के पोषण गुणों पर भी विपरीत असर होता हैं। उन्होनें कहा इन बीमारियों व कीटों की रोकथाम के लिए किसानों को रोग व कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण के साथ-साथ मानव और पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए पर्याप्त भोजन और चारे की आपूर्ति के लिए फसल में लगने वाली बिमारियों व कीटों का उचित प्रबंधन बहुत आवश्यक है। कुलपति ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के सभी प्रयास कम जोत वाले किसान पर अधिक केंद्रित होने चाहिए ताकि वह कम लागत से अधिक पैदावार व आमदनी प्राप्त कर सके। उन्होनें आयोजकों और प्रतिभागियों को कार्यक्रम की सफलता की शुभकामनाएँ दी व शोधकर्ताओं के लिए अनुकूल वातावरण का आश्वासन दिया।
विशिष्ट अतिथि एवं पौध रोग विशेषज्ञ डॉ. भूषण लाल जलाली ने कहा कि बदलता मौसम फसल संरक्षण वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि फसल एवं रोग कारकों का आणविक वर्गीकरण, रोग प्रसार विज्ञान एवं रोग पूर्वानुमान के क्षेत्र में आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग करना समय की मांग है। कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. एस.के. पाहुजा ने भी आणविक तकनीकों व पौधों के रोगजनकों में जीन फंक्शन के बारे में अधिक काम करने पर जोर दिया।
विश्वविद्यालय के अनुसधान निदेशक डॉ. राम निवास ने कहा कि कृषि परिदृश्य दुनिया भर में तेजी से बदल रहा है और प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक भोजन का उत्पादन करने की तत्काल आवश्यकता है। वैज्ञानिकों को पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन तरीकों का उपयोग करके उचित फसल प्रबंधन कार्ययोजना के साथ तैयार रहना चाहिए।
इंडियन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. प्रतिभा शर्मा ने बताया कि इंडियन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी दुनिया में प्लांट पैथोलॉजी की तीसरी सबसे बड़ी सोसायटी है। मानव जाति के प्रति सोसायटी के योगदान के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि सोसायटी ने पादप रोगजनकों के विविध पहलुओं के अध्ययन में अथक योगदान दिया है। इससे पहले पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डा. हवासिंह सहारण ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया।  इंडियन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (नार्थजोन) के अध्यक्ष डॉ. कुशल राज ने नार्थ जोन की प्रगति  प्रस्तुत करते हुए आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों और आयोजन समिति के सदस्यों का धन्यवाद किया। इस अवसर पर डा. अतुल ढींगरा, डा. एस.के मेहता, डा. के.डी. शर्मा, डा. बलवान सिंह, डा. बलदेव डोगरा, डा. बिमला ढांडा, डा. राकेश पांडेय उपरोक्त सोसायटी के जोनल काउंसलर डॉ. राकेश चुघ आदि उपस्थित थे।