कम जोत के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है कृषि वानिकी : प्रोफेसर बी.आर.काम्बोज

हिसार, राजेंद्र अग्रवाल :  कम जोत के किसान कृषि वानिकी को अपनाकर न केवल अतिरिक्त आय कमा सकते है, अपितु पर्यावरण संरक्षण में भी सहयोग कर सकते हैं। वे खेत की मेड़ पर, सडक़ किनारे, पानी के खालों के साथ व खाली पड़ी जमीन पर पेड़ अवश्य लगाएं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने किसानों से यह आहवान करते हुए कहा कि वैज्ञानिक क्षेत्र विशेष की जलवायु के लिए उपयुक्त कृषि वानिकी मॉडल विकसित करके किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं।
कुलपति जोकि विश्वविद्यालय के वानिकी विभाग के अनुसंधान क्षेत्र में चल रहे शोध कार्यों का अवलोकन करने पहुंचे थे, ने कहा कि कृषि वानिकी में जोखिम कम है और यह पर्यावरण एवं पारिस्थिकी संतुलन बनाए रखने में बहुत उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त बेकार पड़ी बंजर, ऊसर, बीहड़ इत्यादि अनुपयोगी भूमि पर बहुउद्देशीय वृक्ष लगाकर इन्हे उपयोग में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा एग्री-हार्टीकल्चर, एग्री सिल्वीकल्चर, सिल्वी पेस्टोरल, हार्टि-एग्रीसिल्वीकल्चर जैसी और भी कृषि वानिकी पद्धतियां हैं जो आर्थिक दृष्टि से किसानों के लिए बहुत लाभदायक हो सकती हैं।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने वानिकी अनुसंधान क्षेत्र पर वानिकी विभाग की ओर से स्थापित सभी कृषि वानिकी के सफेदा, पोपलर, कैसुरीना, नीम, खेजड़ी, बकान, विलो एवं ड्रेगन फ्रूट आधारित विभिन्न कृषि वानिकी प्रणालियों का अवलोकन किया। उन्होंने वानिकी विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोध में मलचिंग विधि तथा पौधों के साथ ऐसी फसलें जिन पर छाया का प्रभाव कम हो, की पहचान करने का सुझाव दिया ताकि किसान इसे अपनाकर ज्यादा लाभ ले सकें।
 वानिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर.एस. बेनीवाल ने बताया कि इस फार्म पर वानिकी के लिए 70 एकड़ जमीन है जिसपर अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं। इस मौके पर कुलपति ने कैर और विलो के पौधें लगाकर वातावरण को शुद्ध रखने एवं कैर जैसे पौधे जोकि विलुप्तता की कगार पर पहुंच चुके हैं, का संरक्षण करने का संदेश दिया। इस अवसर पर उपस्थित कुलसचिव, ओएसडी,  सभी डीन, डायरेक्टर एवं विश्वविद्यालय के सभी विभागाध्यक्षों और वैज्ञानिकों ने भी पौधारोपण किया।