मेडिकल की पढ़ाई अब अपने देश मे ही होगी आसान : सुरेश गोयल धूप वाला

हिसार, राजेंद्र अग्रवाल :  रूस-यूक्रेन युद्ध मे सरकार को यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को वापिस स्वदेश लाने की भारी मशकत औऱ चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसी को लेकर अभिभावकों की अपने बच्चों को लेकर चिंता स्वभाविक है। जो बच्चे मेडिकल डॉ बनने का सपना लेकर विदेशो में गए थे , उनका सपना फिलहाल तो अधर में लटक कर रह गया है।ऐसे अनेको उदाहरण भी सामने आए हैं कि माँ -बाप ने अपना पेट काट कर, कर्ज लेकर या जायदाद बेचकर पैसे जुटाए थे कि बेटा -बेटी एक दिन डॉक्टर बन कर वापिस लौटेगें। परंतु अचानक ही सभी सपने चकनाचूर होकर रह गए, जब अपनी जान हथेली पर रख कर वापिस घर लौट रहे हैं। यह तो भारत सरकार की कुशल रणनीति का ही परिणाम है कि अधिक्तम छात्र कुशलता पूर्वक अपने घर वापिस आ गए हैं अथवा आ रहे है
एक छात्र की मौत भारी वेदना देने वाली है।
खेद की बात तो यह है कि कांग्रेस ने अपने शासन के लंबे कार्यकाल में इस दिशा में कोई प्रयास नही किया कि मेडिकल की पढ़ाई के लिए समुचित व्यवस्था की जाए ।उसी का परिणाम है कि मजबूरी में भारत के बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश जाना पड़ता है।

अधिकतर छात्र पढ़ने के लिए यूक्रेन फिलीपींस, चीन और किंगरिस्तान जाते है। वे वहां अपना शोक पूरा करने के लिए नही मजबूरी में जाना पड़ता है ।सबसे बड़ा कारण तो यह है कि अपने देश के मुकाबले में वहां फीस आधी से भी कम है। सीटों की उपलब्धता भी पर्याप्त है। वहां दाखिले के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा भी नही देनी पड़ती।
इकनॉमी टाइम्स की एक रिपोर्टर के अनुसार यूक्रेन में जहां छ साल के लिए कोर्स की फीस 15 से 20 लाख रुपए तक है वहीं भारत मे निजी विश्वविद्यालयों में फीस साठ लाख से एक करोड़ रुपए तक है। यही कारण है कि बच्चों का यूक्रेन सहित अन्य देशों में जाना मजबुरी है।
ऐसे समय में देश के प्रधान मंत्री मोदी ने निजी मेडिकल कॉलिज में फीस आधी करने का महत्वपूर्ण फैसला लेकर सराहनीय कार्य किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी फ़ैसला लिया है कि अंग्रेजी के साथ पढ़ाई करने में ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों को कठिनाई होती है , इसके लिए हिंदी में पढ़ाई करवाई जाए

यह बहुत ही गहरी सोच का परिचायक है। अधिकतर बच्चे तो उच्चशिक्षा इसलिए प्राप्त नही कर पाते कि वे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं । प्रधान मंत्री के अनुसार अब हिंदी में भी पढ़ाई करके भी डॉक्टर बना जा सकेगा।
प्रधान मंत्री की घोषणा से आने वाले वर्षो में सकारात्मक परिणाम आने की पूरी पूरी संभावना है।