हिसार, राजेन्द्र अग्रवालः वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर विशेष सन 1526 से शुरू हुआ 17 वीं शताब्दी के अंत तक के भारतीय इतिहास का ऐसा कालखंड रहा, जिसमें भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का बड़े पैमाने पर हनन किया गया। मुगल शासकों द्वारा हिंदुओं पर अत्याचारों की एक बहुत लंबी श्रृंखला है। 1742 का बसंत पंचमी का वह दिन आज भी भारतवासियों के रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
वीर हकीकत राय के महाबलिदान की अमर गाथा है। जब 14 वर्ष के उस भोले भाले बालक को धर्म परिवर्तन न करने की सजा के रूप में काजी के आदेश पर भीड़ ने पत्थर बरसा बरसा कर निर्मम हत्या कर दी गई। भारी जोश और बहादुरी के साथ भीड़ में चिल्लाते हुए उस बालक ने कहा मैं अपना धर्म हरगिज नहीं बदलूंगा, इसकी मुझे चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। वह वीर बालक हकीकत राय धर्म के लिए शहीद हो गया। उसने पूरी दुनिया में अनोखी मिसाल कायम करते हुए शहादत का ऐसा परम फैलाया कि आज भी पूरा राष्ट्र नतमस्तक होकर उनको नमन करता है। आज के पाकिसतान के सियालकोट में 1728 में नगर के प्रसिद्ध व्यापारी बागमल और उनकी धर्मपत्नी कौरां के घर पर प्रतिभाशाली होनहार व सुंदर बालक वीर हकीकत राय ने जन्म लिया था। इसे परिवार के संस्कार ही कहिए कि बालक जैसे-जैस बड़ा होता गया वह गीता, पुराण व रामायण का अध्ययन करने लगा। उसकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उसे अनेकों धर्मग्रंथ कंठस्थ हो गए थे।
मुगल शासकों के उस दौर में सरकारी कामकाज फारसी में ही होता था। इसके लिए उनके पिता ने उन्हें फारसी की शिक्षा के लिए मौलवी के यहां भेजा, क्योंकि उनके पिता उन्हें सरकार में उच्च अधिकारी बनाना चाहते थे। वास्तव में मौलवियों और मदरसों में पढऩे वाले हिंदू सनातनी बच्चों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। हिंदू देवी-देवताओं का मुस्लिम बच्चे मजाक उड़ाया करते थे। मदरसे में पढ़ते-पढ़ते एक दिन बालक हकीकत राय की बहस कुछ मुस्लिम लड़ों से हो गई। उन लड़कों ने हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया। हकीकत राय को यह बात सहन नहीं हुई। उसने उन मुस्लिम लड़कों से कहा कि यदि मैं आपके धर्म इस्लाम के बारे में कोई टिप्पणी करूं तो आपको कैसा लगेगा। पूरे वातावरण में सन्नाटा छा गया। उन मुस्लिम लड़कों ने झुठा प्रचार करना शुरू कर दिया कि हकीकत ने बीबी फातिमा को गाली निकाल कर इस्लाम और मोहम्मद का अपमान किया है।
इस पर हकीकत राय को बंदी बना कर कारागार में डाल दिया गया और उसको कठोर यातनाएं दी गई। मुस्लिम समाज द्वारा उन्हें मृत्यु दंड दिए जाने की मांग की जाने लगी। आखिरकार वीर हकीकत राय को पत्थर मार-मार कर भयंकर मौत की सजा दी गई।
बसंत पंचमी के दिन पूरा राष्ट्र वीर हकीकत राय को नमन करता है।