मनीषीसंत के विचार और गांधी के विचार एक दूसरे के पूरक : राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित

हिसार (हरियाणा), राजेन्द्र अग्रवालः   महामहिम राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने कहा कि मनीषीसंत का तेज व ओज मुझे यहां खीच लाया, आज मनीषीसंत मुनिश्री विनय कुमारजी आलोक का जन्मदिवस और मर्यादा महोत्सव आज दो संगम एक साथ है।  तेरापंथ की गतिविधियों का नाभि केंद्र है। मर्यादा महोत्सव का केन्द्रीय विराट आयोजन संघ के अधिशास्ता आचार्य की पावन सन्निधि में समायोजित होता है।
    एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की, एक समाज दूसरे समाज की एवं एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की स्वतत्रंता न छीने इसी का नाम है मर्यादा।    मर्यादा वह पतवार है जो व्यक्ति को आकाशीय ऊँचाइयों तक पहुँचा देता है। मर्यादा संयममय जीवन जीने की जीवन शैली का नाम है। मनीषीसंत का तेज मुझे यहां खीच लाया है।  
 महामहिम ने आगे कहा- आज महात्मा गांधी का निर्वाण दिवस भी है महात्मा गांधी और मनीषींसत के विचारों मे  समानता है, ये एक दूसरे के पूरक है।
   ये शब्द पंजाब के राज्यपाल व चंडीगढ प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने आज 158वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर अणुव्रत भवन के विशाल ग्राउंड में कहे।

महामहिम ने आगे कहा मुनिश्री एक अच्छे लेखक, कवि, सुप्रसिद्ध वक्ता एवं अध्यात्मिक गुरु हैं। आपके मार्गदर्शन से अणुव्रत समिति मित्रता, एकता, शांति और नैतिकता के मूल्यों को स्थापित करने वाले अनुशासित जीवन का पालन करने के लिए लोगों को प्रेरित करने में एक महान योगदान दे रही है। ये बड़े ही हर्ष की बात है कि मानव जाति की सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिए आपश्री को देश भक्त विश्विद्यालय ने पी. एच डी की डिग्री से सम्मानित किया है। लालच की कोई सीमा नही है, भूखा कोई नही सोता है, सहज जीवन व्यतीत करे, सादा जीवन रखेगे तो कमाई कम नही पडेगी, मनीषीसंत के प्रवचनो से एक बात जरूर सीख कर जाये कि कभी घर मे गलत पैसा न आने दे। मनीषीसंत के प्रवचनो को मन मे धारण कर जीवन मे इन्हे लागू करे देखिये जीवन मे कितनी खुशहाली आयेगी। मुझे ज्ञात है कि मर्यादाओं को सुदृढ़ बनाने एवं इनको हर वर्ष दोहराने के उद्देश्य से मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया जाता हैं। मर्यादा-महोत्सव दुनिया का अनूठा उत्सव एवं विलक्षण पर्व है। विश्व में मर्यादा महोत्सव कहीं भी मनाया नहीं जाता, मात्र एक तेरापंथ धर्मसंघ ऐसा है यहां ये उत्सव धूम धाम से मनाया जाता है। मुझे बताया गया है कि तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक परम्परा से जुड़ा यह पर्व लौकिक पर्व नहीं है। इस दिन राग-रंग, नाच गाना, विशाल भोज, मनोरंजन का कोई आयोजन नहीं होता है। सिर्फ सामुदायिक चेतना, शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रेरणा-प्रोत्साहन, अतीत की उपलब्धियों का विहंगावलोकन, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण आदि रचनात्मक प्रवृत्तियां चलती हैं।
   कार्यक्रम में बडी संख्या में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व ट्राईसिटी के बडी संख्या मे श्रावक श्राविकाओं ने हिस्सा लिया। इस दौरान कोविड-19 के नियमों का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया गया। कार्यक्रम  की अध्यक्षता हरियाणा विधानसभा के स्पीकर व पंचकूला के विधायक ज्ञान चंद गुप्ता ने की।  इसके अलावा कार्यक्रम मे विशिष्ट अतिथियों में प्रो. एस.के.मेहता, कुलपति, लद्दाख विश्वविद्यालय (लेह एवं कारगिल कैंपस), जोरा सिंह, कुलाधिपति, देशभगत विश्वविद्यालय, सह कुलाधिपति श्रीमती तेजिंद्र कौर, चंडीगढ यूनिवर्सिटी के प्रो. राकेश कुमार, एरिया पार्षद सौरव जोशी व डा. नागपाल सैक्टर 16 जीएमसीएच  आदि उपस्थित  थे। कार्यक्रम का कुशल संचालन अणुव्रत समिति के अध्यक्ष मनोज जैन ने किया। इसके अलावा कार्यक्रम में ट्राईसिटी के अर्थप्रकाश न्यूज पेपर द्वारा मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक के जन्मदिवस पर  4 पृष्ठो का विशेष सप्लीमेंटरी प्रकाशित किया गया। जिसका विमोचन पंजाब राज्यपाल के हाथो किया गया। कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं का विशेष रूप से सम्मान किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत प्रज्ञा जैन के गीत से  हुई। इसके अलावा आज दिनभर मनीषीसंत को जन्मदिवस की शुभकामनाएं देने वालो का तांता लगा रहा। मनीषीसंत के घनिष्ठ भ्राता मुनि अभयकुमारजी ने शाल्य अर्पण कर शुभकामनाएं और मंगलकामना की।
   मर्यादा महोत्सव तेरापंथ का महाकुंभ मेला : मनीषीसंत मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक
   मनीषीसंत मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक ने कहा  मर्यादा महोत्सव तेरापंथ का महाकुंभ मेला है, जिसमें इसमें शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रेरणा-प्रोत्साहन, अतीत की उपलब्धियों का विहंगावलोकन, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण आदि अनेक रचनात्मक प्रवृत्तियां चलती हैं। सब साधु-साध्वियां अपने वार्षिक कार्यक्रमों और उपलब्धियों का लिखित और मौखिक विवरण प्रस्तुत करते हैं। श्रेष्ठ कार्यों के लिए गुरु द्वारा विशेष प्रोत्साहन मिलता है। कहीं किसी का प्रमाद, मर्यादा के अतिक्रमण का प्रसंग उपस्थित होता है तो उसका उचित प्रतिकार होता है। संघ की यह स्पष्ट नीति है कि किसी की कोई गलती हो जाए तो उसको न छुपाओ, न फैलाओ, किन्तु उसका सम्यक् परिमार्जन करो, प्रतिकार करो।
मर्यादाओं को सुदृढ़ बनाने एवं इनको हर वर्ष दोहराने के उद्देश्य से मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया जाता हैं। मर्यादा-महोत्सव दुनिया का अनूठा उत्सव एवं विलक्षण पर्व है। तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक परम्परा से जुड़ा यह पर्व लौकिक पर्व नहीं है। इस दिन राग-रंग, नाच गाना, विशाल भोज, मनोरंजन का कोई आयोजन नहीं होता है। सिर्फ सामुदायिक चेतना के अभ्युत्थान की संयोजना में धर्मसंघ का दिल और दिमाग नए आदर्शों को अनुशासना से जोड़ता है। इस पर्व पर साधुता की तेजस्विता, कर्तृत्व की कर्मण्यता और निर्माण की निष्ठा का प्रशिक्षण होता है। पूरे धर्मसंघ की आचार्य द्वारा सारणा-वारणा की जाती है।
मनीषीसंत ने आगे कहा तेरापंथ धर्मसंघ तेजस्वी संघ है, यह तैजस की आराधना का केन्द्र हैं। उसकी तेजस्विता के स्रोत हैं- आत्मानुशासन, आत्म निंयत्रण और आत्म संयम की प्रबल भावना। एक आचार, एक विचार और एक समाचारी के लिए तेरापंथ प्रख्यात है। वह संघ स्वस्थ और चिरंजीवी होता है, जिसका प्रत्येक सदस्य स्वस्थ संतुष्ट हो, प्रसन्न हो। मर्यादाओं के निर्माण के पीछे आचार्य श्री भिक्षु का यही पवित्र दृष्टिकोण रहा था। उन्होंने लिखा- न्याय, संविभाग और समभाव की वृद्धि के लिए मैंने ये मर्यादाएं लिखी है। आपसी कलह और सौहार्द की कमी संगठन की जड़ों को कमजोर बनाते हैं। भिक्षु की मर्यादाओं और व्यवस्थाओं का ही प्रभाव है कि तेरापंथ संघ में कलह, घरेलु झगड़े पनप भी नहीं सकते। तेरापंथ में गुरु शिष्यों का संबंध अनुपम है। वे विनय और वात्सल्य भाव के सुदृढ़ स्तम्भों पर टिके हुए हैं। साधु-साध्वियों का विनय, समर्पण, श्रद्धा, भक्ति और अहंकार-ममकार से मुक्त संयमी जीवन भी जन-जन के लिए कम आकर्षण का विषय नहीं है। इसका कारण है आज्ञा, मर्यादा, अनुशासन और गुरु निष्ठा उनके रोम-रोम में श्वास-प्रश्वास में रमी हुई है। तेरापंथ धर्मसंघ एवं उसकी मर्यादाएं आज विभिन्न धार्मिक संगठनों एवं सम्प्रदायों के लिये अनुकरणीय है।

अपने 65 वर्ष के मुनि जीवन मे मनीषीसंत ने अनेका अनेक कीर्तिमान स्थापित किये: हरियाण स्पीकर
हरियाणा विधानसभा के स्पीकर व पंचकूला के विधायक ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन समाज की दुर्दशा एवं अनुशासनहीनता को देखते हुए मर्यादाओं का निर्माण किया। न केवल साधुओं के लिये बल्कि श्रावकों-श्रद्धालुओं के लिये भी नियम बनायें। मनीषीसंत का सानिध्य मुझे बराबर मिलता रहता है। वैसे तो मनीषीसंत के बारे मे कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने के बराबर है। लेकिन फिर भी मनीषीसंत के बारे मे यह भी जाने मनीषीश्रीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने 86वें वें वर्ष मे प्रवेश किया। मनीषीश्रीसंत तेरापंथ के वरिष्ठ संतो मे से एक है जिन्होने अपने 65 वर्ष के मुनि जीवन मे अनेका अनेक कीर्तिमान स्थापित किये है। वे कुशल प्रवक्ता, मधुर भाषी, अनुशासित जीवन शैली मे जीवन जीने वाले साधक है। मनीषीश्रीसंत का जन्म 30 जनवरी 1936 को हुआ, उनकी दीक्षा अक्तूबर 1956 मे सरददारशहर मे गणाधिपति तुलसी के कर कमलो से  हुई।

मनीषीसंत ट्राईसिटी को ऊजर्वान कर रहे है: प्रो. एस.के.मेहता
प्रो. एस.के.मेहता, कुलपति, लद्दाख विश्वविद्यालय (लेह एवं कारगिल कैंपस) ने मनीषीसंत को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं दी और कहा प्रकृति का कण-कण हमें मर्यादा की बात सिखा रहा है। अपेक्षा है, मानव अनुशासन और मर्यादा को अपनाकर जीवन को संवारे। मर्यादा-महोत्सव का यह पावन अवसर सबको यही संदेश देता है कि मर्यादा से ही समस्याओं का निपटारा संभव है।
उन्होने कहा मनीषीसंत अनेका अनेक उपलब्धियों से सम्मानित किये जा चुके है। सूचनाप्रभारी सन 2001, आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ द्वारा राजीव  लोगोंवाल समझौता मे महत्वपूर्ण भूमिका, यूपी व राजस्थान विधानसभाओं मे अणुव्रत प्रस्ताव मे महत्वपूर्ण भूमिका, भारत मनीषीश्री सम्मान 1987 जयपुर, राष्ट्र पुरूष 2002, नामधारी समाज, गुरूदेव तुलसी तथा आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के निर्देशन मे विभिन्न भाषाओं तथा आगमों  का गहन अध्ययन, विभिन्न धर्मो के गं्रथो का पारायण, जन संपर्क मे विशेष उपलब्धि लाखो लोगो को व्यसनमुक्त, व्यसन मुक्ति यात्रा , नशा मुक्ति यात्रा  मे 50 हजार से अधिक व्यक्ति सम्मलित,  अणुव्रत संसदीय मंच का गठन।  राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ, प. बंगाल, मध्यप्रदेश,  गुजरात, महाराष्ट्र, दमन-दीव लगभग 80 हजार किलोमीटर, एक दिन मे 65 किलोमीटर,
 85  वें वर्ष मे प्रवेश किया।

मनीषीश्रीसंत तेरापंथ के वरिष्ठ संतो मे से एक: प्रो. अशोक कुमार
चंडीगढ यूनिवर्सिटी के प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि  मनीषी श्रीसंत तेरापंथ के वरिष्ठ संतो मे से एक है जिन्होने अपने 65 वर्ष के मुनि जीवन मे अनेका अनेक कीर्तिमान स्थापित किये है। कालमयी आदि- आठ काव्य संकलन, अहोदानम् खण्डकाव्य आठ,, इलापुत्र उपन्यास-दो, बंद दायरे आदि काल्पनिक कथाएं तीन, दस श्रावक जीवनियां, अणुव्रत के मंच पर राजनेता चार, ढाई दर्जन पुस्तको का प्रकाशन हो चुका है।  इसमें वैयक्तिक और संघीय गति, प्रगति एवं शक्ति निहित है। स्वयं को समग्र के प्रति समर्पित करने का अनूठा महोत्सव है यह। इसका संदेश है स्वयं को अनुशासित करो, प्रकाशित करो और दूसरों को प्रेरणा दो। अपेक्षा है एक धर्मसंघ में मनाया जाने वाला यह अनूठा पर्व, समग्र मानवता का उत्सव बने।
कार्यक्रम की व्यवस्थाओं के कुशल संचालन में श्री सलील जैन,
    डॉ. सोनिया जैन आदि को  राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया।