स्वामी श्रद्धानंद ने दी थी महात्मा गांधी को महात्मा की उपाधि

हिसार (हरियाणा), राजेन्द्र अग्रवाल:  गुरूकुल आर्यनगर के मंत्री एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने बताया कि गुरूकुल के 57वें वार्षिकोत्सव के शुभ अवसर पर गुरूवार को दूसरे दिन यज्ञ के ब्रह्मा इंद्रदेव शास्त्री ने स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान दिवस पर स्वामी जी से जुड़े अनेक तथ्य प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि महात्मा मुंशीराम सन्यास के बाद स्वामी श्रद्धानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने 1903 में गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की स्थापना आर्य शिक्षा प्रणाली के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए की। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद से हिंदु मुस्लिम एकता के सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपना प्रवचन वेद मंत्रों से प्रारंभ किया। स्वामी देवदत्त शास्त्री ने अपने उद्बोधन में स्वामी जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरूकुल के भवन निर्माण के लिए उन्होंने पंजाब के जालंधर में अपने पैतृक मकान को अपने दोनों पुत्रों हरीश व इंद्र की सहमति से बेच दिया था तथा संपूर्ण प्राप्त राशि गुरूकुल कांगड़ी के निर्माण में लगा दी थी। गुरूकुल के छात्रों व अध्यापकों के सहयोग से लगभग 1500 रूपए एकत्र करके उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में स्वाधीनता आंदोलन चला रहे महात्मा गांधी को सहायतार्थ भेजे थे। वर्ष 1917 में गांधी जी भारत लौटे तो उन्होंने इसके लिए स्वामी जी का धन्यवाद किया और गुरूकुल कांगड़ी स्वामी जी से भेंट की। स्वामी जी ने भी उनकी उदारता व त्याग समर्पण की भावना को देखते हुए उन्हें महात्मा की उपााि प्रदान की। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य पंडित रामस्वरूप शास्त्री ने की तथा अपना आशीर्वाद दिया। कार्यक्रम में यज्ञमान के तौर पर घनश्याम, यशवीर सिंह, धर्मपाल डोभी, अनिल हिसार व गजराज हांसी ने शिरकत की। इस मौके पर गुरूकुल के कार्यकारी प्रधान रामकुमार आर्य, मंत्री लाल बहादुर खोवाल, सुभाष जांगड़ा, सुरेश भाना प्रबंधक, दीप कुमार, गणेश व मेजर करतार सिंह, महात्मा चेतन, हिमांशू आर्य, सीता राम आर्य,सहित अन्य गणमान्य मौजूद थे।