
पटना, नगर संवाददाता : बिहार की सियासत में सोमवार को एक बड़ा राजनीतिक भूचाल आया जब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। यह ऐलान अंबेडकर जयंती के अवसर पर पटना में आयोजित एक जनसभा के दौरान किया गया।
पशुपति पारस ने कहा,
“मैं 2014 से बीजेपी और एनडीए के साथ गठबंधन में था। लेकिन आज से एनडीए से कोई संबंध नहीं रहेगा। अब हमारी पार्टी बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।”
उन्होंने कहा कि उनका यह फैसला बिहार की जनता की भावना के अनुरूप है, जो मौजूदा सरकार से बदलाव चाहती है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सीधा निशाना साधते हुए पारस ने उन्हें “दलित विरोधी” और “मानसिक रूप से बीमार” तक कह डाला। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में दलितों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, और सरकार इन मामलों में कोई कार्रवाई नहीं कर रही।
पारस ने बताया कि वह अब तक बिहार के 22 जिलों का दौरा कर चुके हैं और बाकी 16 जिलों में आने वाले दिनों में जाएंगे। उनका कहना है कि उनकी पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी और किसी भी गठबंधन पर अब निर्भर नहीं रहेगी।
पारस ने इस मंच से केंद्र सरकार से रामविलास पासवान को मरणोपरांत भारत रत्न देने की भी मांग की।
“वे दूसरे अंबेडकर थे। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के लिए पूरी जिंदगी काम किया। उन्हें यह सम्मान मिलना चाहिए,” पारस ने भावुक होकर कहा।
RLJP का एनडीए से अलग होना 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। हालाँकि RLJP की सीटें सीमित रही हैं, लेकिन दलित वोट बैंक में इसका खासा असर हो सकता है।
पशुपति कुमार पारस का NDA से अलग होना बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि RLJP अकेले मैदान में कितनी मजबूती से उतरती है, और इसका असर किस हद तक बिहार के सियासी समीकरणों पर पड़ता है।